मध्य पूर्व एक बार फिर भयंकर तनाव के मुहाने पर खड़ा है। ईरान और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध को सात दिन पूरे हो चुके हैं, और अभी तक अमेरिका ने इसमें आधिकारिक रूप से हिस्सा नहीं लिया है। अमेरिकी सरकार ने फिलहाल “वेट एंड वॉच” की रणनीति अपनाई है, यह उम्मीद करते हुए कि शायद किसी प्रकार का समझौता या सीजफायर हो जाए। हालांकि, परिस्थितियाँ कुछ और ही इशारा कर रही हैं।
इजराइल की हालिया कार्रवाई में उन्होंने दावा किया है कि ईरान के अराक स्थित न्यूक्लियर रिएक्टर को नष्ट कर दिया गया है, जिसे वह संभावित परमाणु बम निर्माण केंद्र मानता है। इसके जवाब में ईरान ने भी जवाबी हमले किए हैं, जिनमें इजराइल के एक बड़े अस्पताल पर मिसाइल हमला शामिल है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हुआ है।
भारतीय छात्रों की सुरक्षा और ऑपरेशन सिंधु
इस तनावपूर्ण माहौल में भारत सरकार ने “ऑपरेशन सिंधु” के तहत ईरान में फंसे भारतीय नागरिकों और छात्रों को सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कई छात्रों को अर्मेनिया के रास्ते भारत लाया गया है। हालांकि, कुछ छात्रों — विशेषकर कश्मीर से — ने शिकायत की है कि उन्हें दिल्ली तो लाया गया, लेकिन दिल्ली से आगे की यात्रा की व्यवस्था नहीं की गई।
इसी तरह, इजराइल में रह रहे भारतीय नागरिकों को भी जल्द ही निकाला जाएगा, क्योंकि युद्ध के थमने की संभावना बहुत कम नजर आ रही है।
चाबहार पोर्ट पर मंडराता संकट
भारत के लिए सबसे बड़ा आर्थिक और रणनीतिक खतरा चाबहार पोर्ट पर मंडरा रहा है, जिसमें भारत ने अब तक करीब 550 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। यदि युद्ध और बढ़ता है, तो यह पोर्ट भी इजराइली हमलों का संभावित निशाना बन सकता है, जिससे भारत की वर्षों की मेहनत और रणनीतिक योजना पानी में बह सकती है।
रूस ने इस संबंध में इजराइल को चेतावनी दी है कि ईरान में उसके द्वारा बनाए जा रहे न्यूक्लियर पावर प्लांट्स पर हमला न किया जाए, अन्यथा इससे चर्नोबिल जैसी त्रासदी हो सकती है।
भारत के लिए भू-राजनीतिक झटका
अगर चाबहार पोर्ट को नुकसान होता है तो भारत का सेंट्रल एशिया और यूरोप तक का रणनीतिक व्यापार मार्ग खतरे में पड़ जाएगा। इसके साथ ही, क्षेत्र में पाकिस्तान को एक नया दबदबा मिल सकता है, जिससे भारत की कूटनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इजराइल का मुख्य उद्देश्य ईरान की वर्तमान सरकार को हटाकर एक प्र-वेस्टर्न सरकार को स्थापित करना है। लेकिन यदि यह कोशिश असफल होती है, तो इजराइल और अधिक आक्रामक हो सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और बिगड़ सकती है।
क्या भविष्य में अमेरिका शामिल होगा?
यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका इस संघर्ष में खुलकर शामिल होगा या नहीं। यदि अमेरिका हस्तक्षेप करता है, तो यह युद्ध लंबा खिंच सकता है और क्षेत्रीय संतुलन को पूरी तरह से बदल सकता है। वहीं, भारत को अपनी आर्थिक और रणनीतिक योजनाओं की नए सिरे से समीक्षा करनी पड़ सकती है।
निष्कर्ष: भारत को अब क्या करना चाहिए?
इस समय भारत को संतुलित कूटनीति और सक्रिय रणनीतिक पहल की आवश्यकता है। चाबहार जैसे प्रोजेक्ट्स की सुरक्षा, नागरिकों की सुरक्षित वापसी, और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस युद्ध से उसके भू-राजनीतिक हितों को न्यूनतम नुकसान हो।