ईरान-इज़राइल युद्ध का सातवां दिन: भारत, चाबहार पोर्ट और वैश्विक भू-राजनीति पर मंडराता खतरा

ईरान-इज़राइल युद्ध का सातवां दिन: भारत, चाबहार पोर्ट और वैश्विक भू-राजनीति पर मंडराता खतरा

ईरान और इज़राइल के बीच जारी संघर्ष अब सातवें दिन में प्रवेश कर चुका है। इस गंभीर भू-राजनीतिक टकराव के बीच अमेरिका की भूमिका अब तक सीमित रही है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रणनीति स्पष्ट रूप से “वेट एंड वॉच” है, जिसमें अमेरिकी प्रत्यक्ष हस्तक्षेप को फिलहाल टालने की नीति अपनाई जा रही है। अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि आने वाले दो सप्ताहों में वह तय करेगा कि युद्ध में वह सक्रिय रूप से भाग लेगा या नहीं।

 

न्यूक्लियर टारगेट्स और अस्पतालों पर हमले

 

इज़राइल ने हाल ही में एक एनिमेटेड वीडियो के ज़रिए दावा किया कि उसने ईरान के अराक स्थित एक न्यूक्लियर रिएक्टर को नष्ट कर दिया है। इस पर इज़राइल का आरोप है कि यह रिएक्टर परमाणु बम बनाने के उद्देश्य से बनाया गया था। वहीं, ईरान ने भी पलटवार करते हुए इज़राइल के एक प्रमुख अस्पताल पर मिसाइल हमला किया, जिससे व्यापक नुकसान हुआ है।

 

भारत के लिए चिंता का विषय: ऑपरेशन सिंधु और चाबहार पोर्ट

 

भारतीय नागरिकों की सुरक्षा अब भारत सरकार की प्राथमिकता बन चुकी है। ‘ऑपरेशन सिंधु’ के तहत ईरान और इज़राइल से भारतीयों को सुरक्षित निकाला जा रहा है। अब तक कई छात्रों को अर्मेनिया के रास्ते दिल्ली लाया जा चुका है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर के छात्र इस बात से असंतुष्ट हैं कि उन्हें केवल दिल्ली तक ही लाया गया, आगे की व्यवस्था नहीं की गई।

 

इस संघर्ष का सीधा असर भारत की सामरिक और आर्थिक योजनाओं पर भी पड़ सकता है, विशेषकर चाबहार पोर्ट, जिसमें भारत ने लगभग $550 मिलियन का निवेश किया है। चाबहार पोर्ट भारत की रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से भारत मध्य एशिया और रूस तक बिना पाकिस्तान से गुज़रे व्यापार कर सकता है।

 

रूस की चेतावनी और चर्नोबिल की आशंका

 

रूस, जो इस समय ईरान में दो परमाणु ऊर्जा संयंत्र बना रहा है, ने इज़राइल को कड़ी चेतावनी दी है कि यदि इन संयंत्रों पर हमला हुआ, तो इससे चर्नोबिल जैसी त्रासदी हो सकती है। रूस का यह बयान वैश्विक तनाव को और बढ़ाता है, और यह बताता है कि मामला सिर्फ ईरान और इज़राइल तक सीमित नहीं है।

 

हाइफा पोर्ट पर हमला और भारत की अपील

 

ईरान द्वारा इज़राइली हाइफा पोर्ट पर हमले से भारत विशेष रूप से चिंतित है, क्योंकि यह पोर्ट अडानी ग्रुप के स्वामित्व में है। बावजूद इसके, भारत ने इज़राइल से आग्रह किया है कि वह ईरान के चाबहार पोर्ट को निशाना न बनाए, जिससे भारतीय निवेश खतरे में पड़ सकता है।

 

इज़राइल की रणनीति: सिर्फ हमला नहीं, सत्ता परिवर्तन

 

विश्लेषकों के अनुसार, इज़राइल केवल ईरान के सैन्य ठिकानों को नष्ट करने की मंशा नहीं रखता, बल्कि उसकी योजना ईरान की मौजूदा इस्लामिक सरकार को हटाकर वहां एक प्रो-वेस्टर्न शासन स्थापित करने की है, जैसा कि शाही शासन काल में था। ऑपरेशन “Rising Lion” इसी उद्देश्य के तहत चलाया जा रहा है।

 

इज़राइली नैरेटिव में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान को एक “जेल में तब्दील देश” बताया गया है, जहाँ मानवाधिकारों की भारी अवहेलना होती है। उनका उद्देश्य है कि ईरान की जनता स्वयं अपनी सरकार के खिलाफ खड़ी हो।

 

अमेरिका की स्थिति: निर्णय के मोड़ पर

 

ट्रंप और अमेरिकी प्रशासन इस पूरे परिदृश्य में बहुत सोच-समझकर कदम उठा रहे हैं। उनका मानना है कि अगर ईरान आंतरिक रूप से अस्थिर नहीं होता, तो अमेरिका को हस्तक्षेप से बचना चाहिए—जिससे वह अफगानिस्तान जैसी दीर्घकालिक उलझन में न फंसे।

 

भारत का भविष्य और चाबहार का संकट

 

यदि युद्ध और गहराता है और चाबहार पर हमला होता है, तो भारत की 550 मिलियन डॉलर की निवेश योजना वर्षों पीछे चली जाएगी। पहले ही अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते इस प्रोजेक्ट को मूर्तरूप देने में बहुत बाधाएं आई हैं। अब यदि युद्ध की भेंट चाबहार चढ़ता है, तो भारत का सेंट्रल एशिया-कनेक्टिविटी विजन ठप हो जाएगा, जबकि पाकिस्तान को रणनीतिक लाभ मिल सकता है।

 

 

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