परिचय
यूनाइटेड स्टेट्स ने हाल ही में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, और अपने प्रमुख सहयोगियों—जापान और ऑस्ट्रेलिया—से ताइवान को लेकर संभावित संघर्ष में उनकी भूमिका स्पष्ट करने को कहा है। ताइवान के भविष्य को लेकर बढ़ते तनाव के बीच, अमेरिका अपने साझेदारों से यह जानना चाहता है कि अगर चीन सैन्य कार्रवाई शुरू करता है, तो उनकी रणनीति क्या होगी। यह घटनाक्रम क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक जटिलताओं को दर्शाता है, जिसके वैश्विक स्थिरता पर गहरे प्रभाव हो सकते हैं।
अमेरिका ने सहयोगियों से मांगा समर्थन
अमेरिका ने जापान और ऑस्ट्रेलिया से सीधे तौर पर पूछा है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो वे क्या करेंगे। यह सवाल, जो कथित तौर पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उठाया, सहयोगियों के बीच एकजुट रणनीति की आवश्यकता को रेखांकित करता है। अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वह ताइवान का समर्थन करने में अकेला न रहे, जैसा कि यूक्रेन-रूस संघर्ष में देखा गया, जहां शुरुआत में अमेरिका ने समर्थन दिया और बाद में यूरोपीय देश शामिल हुए। इंडो-पैसिफिक साझेदारों से स्पष्ट प्रतिबद्धता को चीन की आक्रामकता को रोकने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

ऑस्ट्रेलिया का असमंजस भरा रुख
क्वाड (अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया) का महत्वपूर्ण सदस्य ऑस्ट्रेलिया ने इस सवाल का जवाब अस्पष्ट रूप से दिया है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ हाल ही में चीन की यात्रा पर गए और उन्होंने वहां से एक बयान में चीन के साथ आर्थिक संबंधों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के चार में से एक नौकरी चीन के साथ व्यापार पर निर्भर है, और चीन उसका सबसे बड़ा निर्यात साझेदार है। शंघाई से दिया गया यह संदेश ऑस्ट्रेलिया की आर्थिक स्थिरता को सैन्य प्रतिबद्धताओं से ऊपर रखता है, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
आर्थिक प्राथमिकताएं बनाम सैन्य गठबंधन
ऑस्ट्रेलिया अपने उच्च जीवन स्तर और आर्थिक समृद्धि को बनाए रखने पर अधिक ध्यान देता है, जिसके चलते वह क्वाड या AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, यूके, अमेरिका रक्षा समझौता) जैसे गठबंधनों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं में कमी दिखा रहा है। AUKUS समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियां मिलनी थीं, जो इंडो-पैसिफिक में उसकी रणनीतिक ताकत को बढ़ातीं। लेकिन ट्रम्प द्वारा शुरू की गई इस समझौते की समीक्षा के कारण इसमें देरी हो रही है। इससे नाराज ऑस्ट्रेलियाई नेतृत्व ने ताइवान मुद्दे पर अमेरिका को स्पष्ट आश्वासन देने से बच रहा है।
जापान का सतर्क रवैया
जापान, अमेरिका का एक अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी, ने भी ताइवान संघर्ष में अपनी भूमिका को लेकर स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। ताइवान के निकट होने के कारण, अगर चीन ताइवान पर कब्जा करता है, तो जापान अगला निशाना बन सकता है। फिर भी, जापानी नेताओं ने रक्षा और व्यापार के लिए अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंता जताई है। हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता बढ़ाने की बात कही है, जो ट्रम्प द्वारा लगाए गए व्यापारिक टैरिफ के प्रति असंतोष को दर्शाता है। यह अनिश्चितता अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ढांचे में और जटिलता जोड़ती है।
भारत की भूमिका
क्वाड का चौथा सदस्य भारत भी इस समीकरण में महत्वपूर्ण है। अमेरिका यह जानना चाहता है कि ताइवान संघर्ष में भारत की क्या भूमिका होगी। हालांकि भारत ने तिब्बत जैसे मुद्दों पर चीन पर दबाव बनाना शुरू किया है, लेकिन यह संभावना कम है कि भारतीय नौसेना दक्षिण चीन सागर में चीन से सीधे टकराव के लिए तैनात होगी। अमेरिका को भी फिलहाल भारत से सैन्य सहयोग की ज्यादा उम्मीद नहीं है। भारत का सतर्क रुख उसकी रणनीतिक संतुलन की नीति को दर्शाता है, खासकर जब अमेरिका उसके क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान का समर्थन करता है।
चीन को रणनीतिक लाभ
क्वाड सदस्यों के बीच एकजुटता की कमी से चीन को रणनीतिक लाभ मिल रहा है। ताइवान पर एकजुट रुख की अनुपस्थिति सामूहिक निवारण को कमजोर करती है। अगर जापान और ऑस्ट्रेलिया प्रतिबद्धता से पीछे हटते हैं, तो अमेरिका को पर्याप्त सहयोगी समर्थन की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिससे चीन के लिए ताइवान पर कब्जा करना आसान हो सकता है। यह संभावना ताइवान और व्यापक इंडो-पैसिफिक सुरक्षा ढांचे की कमजोरी को उजागर करती है।
निष्कर्ष
अमेरिका का अपने इंडो-पैसिफिक सहयोगियों से स्पष्टता मांगना क्वाड गठबंधन की नाजुक गतिशीलता को उजागर करता है। ऑस्ट्रेलिया का चीन के साथ आर्थिक जुड़ाव और जापान की रणनीतिक स्वायत्तता की खोज संभावित ताइवान संघर्ष में एकजुट प्रतिक्रिया के समन्वय की चुनौतियों को दर्शाती है। भारत की भूमिका अभी अनिश्चित है, जिससे अमेरिका को जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य से निपटना पड़ रहा है। आने वाले महीने इस बात को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होंगे कि क्या ये सहयोगी चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीतियों को संरेखित कर पाएंगे।